पेड़ोँ को शिकायत है पत्थर नहीँ बदले ,नदियोँ ने उनसे मिलने की कोशिश हज़ार की,
खारे ही रहे अब भी समँदर नहीँ बदले !अच्छा है कि कोरे कागज़ पर मेरे अक्षर भी नहीँ बदले।
मन आवारा , देखो फ़िर उड़ चला हवा में छपी अपनी तस्वीर देख फिसल ही गया... अपनों की रुसवाई सह ना सका... अपनेपन पर न्योछावर हो गया... नेह के आंसू मेघ बन कर यूँ न बरसते... आशा की झिलमिल ज्योत न दिखती, मेरे पागल मन अगर तू ज़मीन पर स्थिर रहता।
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