Tuesday, November 17, 2009

सोच लो!


क्षणभंगुर है सब कुछ...
आज है कल नही रहेगा ,
पता है हमें लेकिन मानते नही...
ऊपर से मान जाएँ तो भी स्वीकारते नही।
द्वेष, क्लेश,दुःख,लगाव,मोह- माया...
इनको गले लगा के किसने क्या है पाया?
कुछ नही, कभी नही, लेकिन ज़िन्दगी अपने आप को पूरी करती ही है,
हर क्षण एक नई उम्मीद प्राण लेती है,
जब साँसे मिली हैं तो जियो,
सिर्फ़ जीना ज़िन्दगी नही है, साँस लो खुल कर हंसों...
क्या पता कल का कुछ भरोसा ही ना हो.

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