Saturday, July 20, 2013

श्रृष्टि से पहले सत  नहीं था , असत भी नहीं ,अंतरिक्ष भी नहीं , आकाश भी नहीं था ।
छिपा था क्या , कहाँ, किसने ढका था? उस पल तो अगम , अटल जल भी कहाँ था ।
श्रृष्टि का कौन है कर्ता  ? कर्ता है या है विकर्ता ?
ऊंचे आकाश में रहता ।  सदा अध्यक्ष बना रहता ।
वही सच मच में जानता , या नहीं भी जानता ...
है किसी को नहीं पता , नहीं पता, नहीं है पता ,नहीं है पता

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