पेड़ोँ को शिकायत है पत्थर नहीँ बदले ,नदियोँ ने उनसे मिलने की कोशिश हज़ार की,
खारे ही रहे अब भी समँदर नहीँ बदले !अच्छा है कि कोरे कागज़ पर मेरे अक्षर भी नहीँ बदले।
मन की कर नहीं सकते
मन की करें तो टिक नहीं सकते
मानो एक बड़ा मछली बाजार फैला हो,
जिस मछली का मालिक दबंग , वही बिकेगी
वरना विशाल शार्क भी पत्थर के मोल निकलेगी
बोली लगा रहे हैं सारे यहाँ
कोई अपनी मछली की , कोई अपने भावनाओ की।
टिकता वही है जो बिकता है.
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