Friday, August 22, 2008

पगडंडियों के सहारे चलते चलते ,
प्रशस्थ हुए हैं कई रास्ते नए,
विसंगतियां हमारी विस्मृत कर दे दो ये अभय,
अरण्य के हर शाख पर हम बसा सके नित पाहुन हम नए
और स्वयं बस जाएँ सदा के लिए उनके ह्रदय में........

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