पेड़ोँ को शिकायत है पत्थर नहीँ बदले ,नदियोँ ने उनसे मिलने की कोशिश हज़ार की,
खारे ही रहे अब भी समँदर नहीँ बदले !अच्छा है कि कोरे कागज़ पर मेरे अक्षर भी नहीँ बदले।
पगडंडियों के सहारे चलते चलते , प्रशस्थ हुए हैं कई रास्ते नए, विसंगतियां हमारी विस्मृत कर दे दो ये अभय, अरण्य के हर शाख पर हम बसा सके नित पाहुन हम नए और स्वयं बस जाएँ सदा के लिए उनके ह्रदय में........
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