पेड़ोँ को शिकायत है पत्थर नहीँ बदले ,नदियोँ ने उनसे मिलने की कोशिश हज़ार की,
खारे ही रहे अब भी समँदर नहीँ बदले !अच्छा है कि कोरे कागज़ पर मेरे अक्षर भी नहीँ बदले।
दिखावे की दुनिया है ..... जो दीखता नही वो बिकता नही और जो बिकता नही वो टिकता नही....... सुबह की ओस की बूँद किसे याद है, आजकल तो स्वभाव के भी ऊंचे भाव हैं!
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