Sunday, August 7, 2011

कल,आज, कल !

आज सवेरा देर से हुआ ,
आज साहिल ने साँसों को थोडा कम छेड़ा ।
कुछ कम किश्तियों ने लहरों को छुआ,
राहों ने आज फासले थोड़े कम तय किये ।

बारिश तो कल भी हो रही थी,
बिजलियाँ परसों भी कहर ढा रही थीं ।
आँखों में सितारे कल भी टिमटिमाते थे,
आंसूओं ने कल भी कोई बंदिश नहीं जानी थी।

कागज़ , कलम और कैनवास- कल कोरे मिलें मुझे तो ही अच्छा होगा
नया पन्ना लिखूंगी।
नयी तस्वीर बनाऊँगी।

कल सवेरा सही समय पर होगा!
मौजें अपनी नियति खुद बनायेंगी।

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