- पढ़ाई करनी थी अपने मन के अनुकूल , माँ मुझे 'मन- की ' बुलाया करती थी …सरस्वति पुत्री - कर लिया !
- पढना था , पापा के कदमो पर चल के- पढ़ा लिया!
- समाज सेवा करनी थी- ३ साल कर लिया !
- चित्रकार बनना था- थोडा बहुत बन गयी हूँ !
- अपनी किताब प्रकाशित करवानी है- मेरा अगला सपना यही है।
- एक छोटी सी दुनिया बनानी है - इस बड़ी सी दुनिया के एक शांत से कोने में। - इसका ढांचा बन गया है, रंग भरने बाकी हैं . फूल हरियाली से घिरी हुयी मेरी अपनी ही दुनिया हो। एक दिन ये तस्वीर भी पूरी होगी ये उम्मीद है।
कुछ दिनों पहले मैंने ये हिसाब बिठाया कि रो कर, गा कर, हँस करकर या चाहे जैसे भी हो उपरवाला मेरे ब्लॉग पोस्ट पढ़ के ही मेरी किस्मत कि लकीरें खीच रहा है और सपने पूरे कर रहा है। इसीलिए मैंने भी रिफ्रेश बटन दबा दिया।
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